Saturday, 18 October 2014

ख़याल - I

थी ऐसी बरकत अंदाज़ में उनके,
के इक फ़कीर को अपना कायल बना दिया
अब हर फुर्सत में करते हैं शुक्रिया उनका,
गुमशुदा ख्यालों से शायर बना दिया...

नज़रों से खता इक रोज़ हुई ऐसे,
अब और कोई हमसे शरारत नहीं होती

क़बूल हुई दुआ, अधूरी ही सही,
तकदीर से अब कोई शिकायत नहीं होती

उनके दर पे सर झुका दिया जबसे,
और कहीं यूँ ही इबादत नहीं होती

आईने में दीदार उनका कर लिया जबसे,
अक्स से भी अपनी तब से हिफाज़त नहीं होती

बेहक जाता दिल आशिकी की रवानी में,
अदा में उनके वो ज़ालिम नज़ाकत होती

महफ़िल में भरी उन्हें थाम लेता गर,
बुज़दिल इस ज़माने में बग़ावत होती

इश्क के कारोबार में नफ़ा-नुक्सान बड़ा देखा,
कहीं और दिल लगाने की अब हिमाकत नहीं होती

पूछे बिना उन्हें रज़ा में मांग लेता पर,
इश्क में खुदगर्ज़ी की इजाज़त नहीं होती

चार दिन की जवानी हँसते गुज़ार लेता,
गुस्ताख़ दिल को कमज़र्व् ये मोहब्बत होती...

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