Tuesday 21 April 2020

ख़्याल - V

ख्यालों का मिलना ज़रूरी है, वरना-
यूँ ही कहाँ कोई किसी के काम आया है
कुछ न कुछ तो मजबूरी रही होगी,
अरसों बाद जो उनका पैग़ाम आया है

खुदाई भी कम पड़ी होगी, शायद-
मस्जिद के बाद जो अस्पताल आया है
मत पूछो उससे जुस्तजू की वजह,
नादाँ दिल को अभी ही तो प्यार आया है.

शब् ने चिरागों को कर दी इंतिबाह,
उसने चेहरे से आज पर्दा हटाया है.
कर लिया हमने खुदको उसके काबिल,
यहाँ मैं नहीं आज कोई और आया है.

बचत नहीं होती उसूलों की यहां,
सस्ते हैं ईमान, मेहेंगा किराया है
पकड़ नहीं पाता इस शहर की रफ़्तार,
आज फिर गांव ने वापस बुलाया है.

बड़े हो गए शायद हम भी काबिल,
याद नहीं माँ को कब गुस्सा दिलाया है.
कैसे करूँ वक़्त से जवानी का सौदा?
पिछली बाज़ी में ही तो बचपन गवाया है.

जाना नहीं कहीं फिर भी कर लो फैसला,
के क्या है अपना और क्या पराया है.
मिलना, न-मिलना - दोनों मुकद्दर होगा,
देखते हैं सब खो कर के क्या पाया है.

बात होती रहे, यही बात हुई थी सबकी,
क्या मैं ही हूँ जिसने वादा निभाया है?
छोड़ दो मुझे मेरे हाल पे अब,
बड़ी देर बाद ये कश फिर हाथ आया है...

No comments:

Post a Comment