Friday, 8 May 2015

ख़याल - III

चलो आज फिर अजनबी हो जाते हैं

हालातों की तंग वो गलियाँ
जज़्बातों की सब मनमर्ज़ियाँ
हसरतों के गुमशुदा काफिले 
खामोश अर्जियों के फ़िज़ूल वो सिलसिले 
किसी मोड़ पे इन्हे यूँ ही भूल आते हैं
चलो आज फिर अजनबी हो जाते हैं

यादों का लिहाज़ जो मजबूरन थामे है
बेबस कलम संग गुज़री जो शामें हैं
तजुर्बों का बोझ जो अब कुछ भारी है
मासूमियत वो जो वक़्त से हारी हैं
ज़िन्दगी से इनका सौदा कर लाते हैं
आज हम फिर अजनबी हो जाते हैं

हर ज़िक्र पे तेरी बेफिक्र नादानियाँ 
मौसम सी ज़ाहिर मेरी सारी हैरानियाँ
बेइल्म, बेलिहाज़ तेरे बेशुमार वादे
बाअदब, बेहिसाब मेरे बेबाक इरादे
वक़्त से फिर वही लम्हे समेट लाते हैं
और बस यूँ ही अजनबी हो जाते हैं

जहां पीछे नहीं बुलाये गुज़रा हुआ कल
और साँसें बिखेर जाये आने वाला पल
सोचे बिन कह पाएं दिल की सीधी बातें 
बिन पूछे हो जाएं कभी यूँ ही मुलाकातें
फिर वही दिन वही शाम ढूंढ लाते हैं
चलो आज हम फिर अजनबी हो जाते हैं

PS (8th Jan 2016): The title may be an unconscious recollection of a Mahendra Kapoor song written by Sahir Ludhianvi.
Link to the song- Chalo Ek Baar Phir Se Ajnabi Ban Jaye Hum Dono

Lyrics- Chalo Ek Baar Phir Se Ajnabi Ban Jaye Hum Dono

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