Sunday, 14 February 2021

ख़याल - VI

एक फितरत थी ये कभी,
जो ज़रुरत बनती जा रही है।
देखने हैं सपने मगर -
नींद कहाँ  रही है।
अब मेरी ही तरह ये कलम भी,
शायद यूँ ही चले जा रही है।
ये cigarette जलती जा रही है।
 
कुछ ख़ास है ये मेहफिल,
आज वो भी मुस्कुरा रही है।
हर सवाल के जवाब में,
दो और पूछे जा रही है। 
सही-गलतसच-झूठ,
ये तेरे मेरे होंगे मायने। 
वो लड़की है वो तो बस,
बातें बता रही है।
जो भूल गया वो याद,
आज फिर याद  रही है,
ये cigarette जलती जा रही है।
 
कुछ सुधर रहे थे हम,
वो जब एक शाम लेकर आये। 
हम भी बिगड़ गए क्योंकि,
लफ़्ज़ों पे नाम लेकर आये। 
यूँ तो समझ गए थे वो,
की कुछ संभल गए हैं हम।
इसीलिए फिर भी शायद -
हाथों में जाम लेकर आये। 
अब हर कश से ये तलब,
कुछ और बढ़ती जा रही है,
ये cigarette जलती जा रही है।
 
खुद उनको था जो सुनना,
वो अनजानों ने ही पूछा। 
कुछ हमको भी था कहना,
वो यारों ने ही पूछा।
बातों की इन बातों में,
एक मसला था सुलझाना। 
तो पहले हमने तुमसे,
फिर बांकी सब से पूछा। 
तुमने कहा कुछ और,
दुनिया कुछ और बता रही है,
ये cigarette जलती जा रही है।
 
क़ुबूल हुआ ज़माने को,
वो सब पाक़ कर दिया।
जो मंज़ूर  हो सका,
उसको नक़ाब कर दिया।
हसरत--फिरदौस का जूनून,
कहीं मोक्ष की तमन्ना -
किसी ने दफ़न कर दिए अपने,
किसी ने राख़ कर दिया।
क्या करेंक्या ना करें?
कश्मकश बढ़ती जा रही है,
ये cigarette जलती जा रही है...